
उत्तराखंड और अन्य पर्वतीय राज्यों में रोपवे परियोजनाओं के निर्माण की प्रक्रिया में अब आसानी होगी। केंद्रीय पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है, जिसमें रोपवे के लिए पूरी वन भूमि के हस्तांतरण की आवश्यकता नहीं होगी। अब केवल पिलर के स्थानों पर स्थित वन भूमि का हस्तांतरण होगा। इस निर्णय से उत्तराखंड के प्रमुख रोपवे परियोजनाओं, जैसे केदारनाथ, मसूरी, नीलकंठ और यमुनोत्री, के निर्माण में तेजी आ सकेगी।
इस निर्णय को केंद्रीय मंत्रालय की सलाहकार समिति ने वन संरक्षण अधिनियम में छूट के रूप में मंजूरी दी है। उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक आरके मिश्रा ने इस निर्णय की पुष्टि की है। उन्होंने बताया कि अब पहले से ज्यादा समय बचने के साथ-साथ पेड़ों के कटान में भी कमी आएगी। पहले, परियोजना के लिए दोगुनी भूमि की जरूरत होती थी, जिससे वन भूमि हस्तांतरण की प्रक्रिया में देरी होती थी।
मंत्रालय की सलाहकार समिति ने रोपवे को पर्यावरण अनुकूल माना है, क्योंकि इस परियोजना के तहत वन क्षेत्र में कम से कम अतिक्रमण होता है और पेड़ों का कटान न के बराबर होता है। समिति ने कहा कि पहाड़ी क्षेत्रों में यह परियोजना न केवल पर्यावरण के लिए लाभकारी है, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए किफायती और सुरक्षित परिवहन का भी एक महत्वपूर्ण साधन बन सकती है।
उत्तराखंड सरकार ने केंद्रीय मंत्रालय को तीन दर्जन से ज्यादा रोपवे परियोजनाओं के प्रस्ताव भेजे हैं, जिनमें प्रमुख परियोजनाएं गौरीकुंड-केदारनाथ और जोशीमठ-हेमकुंड साहिब शामिल हैं। पीएम नरेंद्र मोदी ने इन परियोजनाओं का शिलान्यास किया है। मंत्रालय के निर्णय के बाद इन परियोजनाओं के लिए वन भूमि हस्तांतरण में तेजी आएगी, जिससे इन क्षेत्रों के पर्यटन को नई दिशा मिल सकेगी।