फिल्म अभिनेत्री हिमानी शिवपुरी 53 साल बाद अपने पैतृक गांव रुद्रप्रयाग के भटवाड़ी पहुंचीं, जहां ग्रामीणों ने उनका भव्य स्वागत किया। फूल-मालाओं से उनका अभिनंदन किया गया। गांव पहुंचने के बाद उन्होंने अपनी कुलदेवी के दर्शन कर पूजा-अर्चना की और ग्रामीणों से बातचीत कर उनकी समस्याओं को समझा। उन्होंने कहा कि वह अपने गांव के विकास के लिए हरसंभव प्रयास करेंगी।
हिमानी शिवपुरी ने घोषणा की कि उन्होंने अपने मायके को गोद लिया है और यहां महिलाओं और बच्चों के सामाजिक एवं आर्थिक विकास के लिए कार्य करेंगी। इसके साथ ही, वह शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने पर भी ध्यान देंगी। सोमवार को अपने चाचा पितांबर दत्त भट्ट और भाई हिमांशु भट्ट के साथ गांव पहुंची हिमानी ने ग्रामीणों से चर्चा की और उनकी समस्याओं को जाना। महिलाओं और बच्चों को विशेष रूप से संबोधित करते हुए उन्होंने सुझाव मांगे और उन्हें हरसंभव मदद का आश्वासन दिया।
उन्होंने कहा कि रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के कारण लोग गांव छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं। वह बचपन में करीब 8-9 साल की उम्र में गांव आई थीं और अब इतने सालों बाद लौटने पर पुरानी यादें ताजा हो गईं। उन्होंने बताया कि उनका लक्ष्य गांव को आत्मनिर्भर बनाना और पलायन को रोकने में मदद करना है।
हिमानी शिवपुरी ने उत्तराखंड के गांवों से हो रहे पलायन पर चिंता जताई और प्रवासियों के अपने गांव लौटने की प्रवृत्ति को सुखद बताया। उन्होंने कहा कि सरकारें प्रयास कर रही हैं, लेकिन अभी भी कई गांव मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। उन्होंने सरकार से अपील की कि गांवों को बुनियादी सुविधाओं से जोड़ा जाए, जिससे लोग अपने मूल स्थान पर ही रह सकें और आजीविका कमा सकें।
अपने फिल्मी सफर के बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया कि वर्ष 1984-85 में वह फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखने वाली पहली पहाड़ी महिला थीं। तब परिस्थितियां कठिन थीं और संघर्ष अधिक था। लेकिन लोगों के सहयोग और आशीर्वाद से वह सफल रहीं। उन्होंने गढ़वाली और कुमाऊंनी फिल्मों में भी काम किया है और चाहती हैं कि पहाड़ी सिनेमा को अधिक पहचान मिले।
गढ़वाली भाषा को लेकर उन्होंने कहा कि वह इसे समझती और बोलती हैं। गढ़वाली गाने सुनने और गुनगुनाने का प्रयास करती हैं और हमेशा कोशिश करती हैं कि गढ़वाली में अधिक से अधिक संवाद करें। उन्होंने पहाड़ी सिनेमा और नाटकों को मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
उन्होंने कहा कि सरकारों को योजनाओं पर सिर्फ मंथन ही नहीं बल्कि ठोस निष्कर्ष निकालने चाहिए। लोग अपनी आजीविका के लिए बाहर जाएं, लेकिन अपनी जड़ों से जुड़े रहें। उन्होंने विश्वास जताया कि अगर सरकारें सही दिशा में काम करें, तो उत्तराखंड के गांवों में पलायन को रोका जा सकता है और लोगों को अपने गांव में ही रोजगार के अवसर मिल सकते हैं।