फागोत्सव, जिसे फगुआ भी कहा जाता है, बसंत ऋतु का उल्लासमय पर्व है, जिसमें प्रेम, भाईचारा और रंगों की छटा बिखरती है। यह केवल होली का उत्सव नहीं, बल्कि भक्ति और संस्कृति का संगम भी है। इस दौरान भगवान विष्णु, शिव, श्री हरि, गणेश और कृष्ण के साथ कुल देवताओं की पूजा की जाती है।
बसंत के इस पर्व में भक्तगण अपने आराध्य के साथ गुलाल और फूलों से होली खेलते हैं। भक्तिपूर्ण वातावरण में कबीर, मीरा और राधा-कृष्ण के होली गीत गाए जाते हैं, जो पर्व की पवित्रता और उल्लास को और बढ़ाते हैं। ब्रज की होली हो या कुमाऊं की खड़ी होली, बरसाने की लट्ठमार होली हो या फूलों की होली, हर जगह उत्सव का अनोखा रंग देखने को मिलता है।
महिलाएँ इस पारंपरिक उत्सव को जीवंत बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। वे घरों से बाहर निकलकर अपनी समृद्ध विरासत को न केवल सहेज रही हैं, बल्कि नई पीढ़ी को भी इससे जोड़ रही हैं। उनकी भागीदारी इस पर्व को और अधिक भव्य बना रही है।फागोत्सव केवल एक दिन का नहीं, बल्कि बसंत पंचमी से होली तक चलने वाला 40 दिन लंबा उत्सव है। इसमें देश-विदेश से बड़ी संख्या में पर्यटक भाग लेते हैं। इस दौरान फूलों और रंगों से होली खेली जाती है, जिसमें भक्तगण आध्यात्मिक आनंद का अनुभव करते हैं।
होली के दिन गाए जाने वाले विशेष गीतों को फगुआ कहा जाता है। इनमें रंगों की महिमा, प्रकृति की सुंदरता और राधा-कृष्ण के प्रेम की झलक होती है। नैनीताल की प्राचीनतम धार्मिक एवं सांस्कृतिक संस्था, जो 1918 से होली उत्सव का आयोजन कर रही है, फागोत्सव का यह 29वां वर्ष मना रही है।
फागोत्सव की शुरुआत पूस के पहले रविवार से होती है और यह भगवानों को समर्पित रहता है। बसंत पंचमी के बाद श्रृंगार होली शुरू होती है, शिवरात्रि के बाद भगवान शिव इसमें शामिल होते हैं, और रंगभरी एकादशी से लेकर होलिका दहन तक पर्व अपने चरम पर होता है। कलाकारों के माध्यम से यह उत्सव लोगों के जीवन में नए रंग भरने का कार्य करता है।