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उत्तराखंड में हर साल जंगलों में लगने वाली भीषण आग को रोकने के लिए अब दुनिया का सबसे एडवांस फॉरेस्ट फायर एप्लीकेशन इस्तेमाल किया जाएगा। यह एप कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और साउथ अफ्रीका जैसे देशों में पहले से प्रयोग किए जा रहे एप्लीकेशनों के विस्तृत अध्ययन के बाद विकसित किया गया है। इसकी खासियत यह है कि इसे भारतीय वन सेवा (IFS) के अधिकारी वैभव सिंह ने खुद वर्षों की रिसर्च और दो साल के ट्रायल के बाद तैयार किया है।
उत्तराखंड में पहली बार एडवांस फॉरेस्ट फायर एप का प्रयोग
उत्तराखंड के घने जंगलों में हर साल लगने वाली आग को नियंत्रित करना एक बड़ी चुनौती रही है। कई बार संसाधन और तकनीक होने के बावजूद आग को समय पर बुझाना मुश्किल हो जाता है। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और अन्य देशों की तरह, उत्तराखंड के जंगल भी गर्मियों में तेजी से जल उठते हैं, जिससे वन संपदा और जैव विविधता को भारी नुकसान होता है। अब इस नई तकनीक की मदद से राज्य में वनाग्नि पर त्वरित प्रतिक्रिया और प्रभावी नियंत्रण संभव हो सकेगा।
IFS अधिकारी वैभव सिंह की अनूठी पह
भारतीय वन सेवा के अधिकारी वैभव सिंह, जो वर्तमान में हरिद्वार में DFO (डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर) के रूप में तैनात हैं, ने इस एप को विकसित किया है। इसे तैयार करने में उन्हें कई वर्षों की मेहनत और 31 वर्जन के सुधार के बाद सफलता मिली।
वैभव सिंह ने रुद्रप्रयाग में DFO रहते हुए 2020 से 2022 तक इस एप का ट्रायल किया, जिसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले। उन्होंने कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और साउथ अफ्रीका जैसे देशों में जाकर वहां के फॉरेस्ट फायर एप्लीकेशन का अध्ययन किया और उन्हें भारतीय परिस्थितियों के अनुसार मॉडिफाई किया।
इस एप की खासियतें जो इसे दुनिया में सबसे एडवांस बनाती है
यह एप कई आधुनिक सुविधाओं से लैस है, जो इसे दुनियाभर में मौजूद अन्य फॉरेस्ट फायर एप्स से बेहतर बनाता है। इसकी कुछ प्रमुख खूबियां निम्नलिखित हैं:
1. रियल-टाइम फॉरेस्ट फायर मॉनिटरिंग
पूरे उत्तराखंड के वन क्षेत्र की लाइव ट्रैकिंग संभव होगी।
सैटेलाइट आधारित तकनीक से जंगल में आग लगते ही तुरंत जानकारी मिलेगी।
जहां पहले सूचना पहुंचने में 6 घंटे लगते थे, अब वह तुरंत मिल जाएगी।
2. त्वरित कार्रवाई और कम रिस्पॉन्स टाइ
पहले जहां आग लगने की सूचना आने और कर्मियों के पहुंचने में 5-6 घंटे लगते थे, अब यह तुरंत अपडेट होगी।
आग लगने की जगह की सटीक लोकेशन तुरंत फॉरेस्ट अधिकारियों और कर्मचारियों को मिलेगी।
3. कर्मचारियों और वाहनों की लाइव लोकेशन ट्रैकिंग
फील्ड में तैनात 7000 से अधिक वन कर्मचारियों की लाइव लोकेशन एप के माध्यम से ट्रैक की जा सकेगी।
40 से अधिक सरकारी वाहन जीपीएस से जोड़े गए हैं, जिससे उनकी लोकेशन भी ट्रैक होगी।
आग लगने के स्थान के 500 मीटर के भीतर पहुंचने पर ही कर्मचारी एप अपडेट कर पाएंगे, जिससे सुनिश्चित होगा कि वे मौके पर पहुंचे हैं।
4. आग से प्रभावित वन क्षेत्र की सटीक जानकारी
आग चीड़ के जंगलों में लगी है या बांज के जंगल में, इसकी सटीक जानकारी एप के माध्यम से मिलेगी।
आग लगने वाले क्षेत्र के वनस्पति प्रकार (Vegetation Type) की कैटेगरी भी एप में अपडेट होगी।
5. मौसम पूर्वानुमान और फाल्स अलर्ट सिस्टम
भारत सरकार के मौसम विभाग से सीधे इंटीग्रेशन होने के कारण, वन क्षेत्रों में मौसम की सटीक जानकारी मिलेगी।
एप फाल्स अलर्ट को फिल्टर कर सकेगा, जिससे गैर-जरूरी सूचनाओं को रोका जा सकेगा।
आम नागरिक भी एप के जरिए दे सकेंगे सूचन
वन विभाग ने इस एप को न केवल अपने कर्मचारियों तक सीमित रखा है, बल्कि आम नागरिकों को भी इससे जोड़ने की योजना है। भविष्य में स्वयं सहायता समूह, पंचायतों, वॉलंटियर्स और स्थानीय लोगों को भी इस सिस्टम का हिस्सा बनाया जाएगा।
कोई भी व्यक्ति अगर जंगल में आग देखता है, तो वह इस एप के जरिए जियो-टैग लोकेशन भेज सकता है।
इस सूचना को तुरंत फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के कमांड सेंटर तक पहुंचाया जाएगा, जिससे समय रहते कार्रवाई की जा सके।
उत्तराखंड वन विभाग ने किया एप को आधिकारिक रूप से अपनाया
उत्तराखंड वन विभाग के एपीसीसीएफ (Additional Principal Chief Conservator of Forests) निशांत वर्मा के अनुसार, यह एप वन विभाग के लिए क्रांतिकारी साबित होगा।
> “उत्तराखंड के जंगलों की सुरक्षा के लिए यह एप एक बड़ा कदम है। इंटीग्रेटेड कमांड सेंटर में इस एप के जरिए पूरे राज्य की निगरानी संभव होगी। यह आग बुझाने के प्रयासों को तेज और प्रभावी बनाएगा।”
— निशांत वर्मा, एपीसीसीएफ, उत्तराखंड वन विभाग
आने वाले समय में अन्य राज्यों में भी होगा विस्तार
फिलहाल यह एप उत्तराखंड में राज्य-स्तर पर पहली बार इस्तेमाल किया जा रहा है। लेकिन अगर यह सफल रहता है, तो इसे देश के अन्य राज्यों में भी लागू किया जा सकता है। वनाग्नि नियंत्रण की दिशा में यह एक तकनीकी क्रांति साबित हो सकता है।