
राष्ट्रीय: केंद्र सरकार ने 8 अप्रैल 2025 से पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क (एक्साइज ड्यूटी) बढ़ाने का निर्णय लिया है। इस बढ़ोत्तरी के तहत अब पेट्रोल पर 13 रुपये और डीजल पर 10 रुपये प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी वसूली जाएगी। यह फैसला ऐसे समय में लिया गया है जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट देखी जा रही है।
सरकार की अधिसूचना के अनुसार, यह बदलाव उत्पाद शुल्क अधिनियम 1944 की धारा 5A और वित्त अधिनियम 2002 की धारा 147 के अंतर्गत जनहित में किया गया है। हालांकि शुल्क में यह इजाफा हुआ है, लेकिन केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि इसका बोझ आम जनता पर नहीं डाला जाएगा। खुदरा कीमतें पूर्ववत बनी रहेंगी।
तेल विपणन कंपनियों (OMCs) ने भी कहा है कि वे इस बढ़े हुए शुल्क का बोझ खुद वहन करेंगी। उपभोक्ताओं को पेट्रोल-डीजल की मौजूदा कीमतों पर ही ईंधन मिलता रहेगा। पेट्रोलियम मंत्रालय ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर भी यह पुष्टि की है कि रेटेल प्राइस में कोई बदलाव नहीं होगा।
एनर्जी मामलों के विशेषज्ञ नरेंद्र तनेजा ने इस फैसले को सरकार की एक ‘रणनीतिक योजना’ बताया है। उनके मुताबिक, चूंकि ग्लोबल मार्केट में कच्चे तेल की कीमतें अभी कम हैं, इसलिए कंपनियों के लिए इस टैक्स को झेलना संभव है। सरकार इसी मौके का उपयोग अपने वित्तीय संतुलन को बेहतर करने के लिए कर रही है ताकि कल्याणकारी योजनाओं, जैसे खाद्यान्न सब्सिडी, को प्रभावित न किया जाए।
ध्यान देने वाली बात यह भी है कि पिछली बार 14 मार्च 2025 को भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कटौती की गई थी। इससे पहले मई 2022 से कीमतें स्थिर बनी हुई थीं। वर्तमान में की गई यह टैक्स बढ़ोतरी, उस संतुलन को दोबारा हासिल करने की दिशा में देखा जा रहा है।
हालांकि इस फैसले पर राजनीतिक प्रतिक्रिया भी सामने आई है। विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल सस्ता हो रहा है, तब सरकार को जनता को राहत देनी चाहिए थी, न कि टैक्स बढ़ाना चाहिए था। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस फैसले को जनविरोधी बताया है और सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए हैं।
बाजार में भी इस फैसले का असर देखा गया। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में तेल कंपनियों के शेयरों में गिरावट दर्ज की गई, जिससे निवेशकों की चिंता और असमंजस भी साफ नजर आया।