
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में मंगलवार को हुए आतंकवादी हमले ने न केवल 26 निर्दोषों की जान ली, बल्कि इस घटना ने इंसानियत को भी गहरे आघात पहुंचाया। जब आतंकवादियों ने बैसरन क्षेत्र में सैलानियों से उनका धर्म पूछकर उन्हें गोली मारना शुरू किया, तो एक कश्मीरी युवक, सैयद हुसैन शाह, इस जघन्य कृत्य को देख नहीं सका। उसने अपनी जान की परवाह किए बिना आतंकवादियों से मुकाबला किया और कई लोगों की जान बचाई, इस तरह कश्मीरियत की पुरानी परंपरा को जिंदा रखा।
सैयद हुसैन शाह, जो पहलगाम के पास अशमुकाम गांव का निवासी था, पर्यटकों को घोड़े की सवारी कराता था। मंगलवार को वह पर्यटकों के साथ बैसरन घाटी में था, जब आतंकवादियों ने अचानक हमला किया। जैसे ही आतंकवादियों ने गोलियां बरसानी शुरू कीं, सैयद हुसैन ने बिना किसी डर के उनका सामना किया और उन्हें रोकने की कोशिश की। उसने आतंकवादियों से कहा कि ये सभी बेगुनाह लोग हैं और कश्मीर के मेहमान हैं, लेकिन आतंकवादियों पर उसकी बातों का कोई असर नहीं हुआ। इसके बाद, उसने एक आतंकवादी से संघर्ष करते हुए उसकी राइफल छीनने की कोशिश की। इस संघर्ष में आतंकी की राइफल से निकली गोलियां सैयद हुसैन को घायल कर देती हैं, और वह गिरकर बुरी तरह से घायल हो जाते हैं।
सैयद हुसैन को गंभीर हालत में अस्पताल पहुंचाया गया, लेकिन वहां उसने दम तोड़ दिया। पोस्टमार्टम के बाद उसका शव परिजनों को सौंपा गया और रात के समय उसे सुपुर्दे खाक कर दिया गया। उनके साथी बिलाल ने बताया कि अगर सैयद हुसैन चाहता, तो वह आसानी से अपनी जान बचाकर भाग सकता था, लेकिन उसने आतंकवादियों का मुकाबला किया। बिलाल ने यह भी कहा कि सैयद की बहादुरी और बलिदान की वजह से ही वहां मौजूद कई लोगों की जान बच पाई। अगर सैयद हुसैन आतंकवादियों से न भिड़ते, तो शायद बैसरन में मौजूद सभी लोग मारे जाते।