
उत्तराखंड: एक ओर उत्तराखंड सरकार शिक्षा के क्षेत्र में नई तकनीक और स्मार्ट शिक्षा की ओर तेजी से बढ़ रही है, तो वहीं दूसरी ओर कई सरकारी स्कूल ऐसे हैं, जहां बच्चे खतरे के साए में पढ़ाई करने को मजबूर हैं। प्रदेश के 840 स्कूलों में जहां हाइब्रिड मोड में वर्चुअल और स्मार्ट क्लासेस चलाई जा रही हैं, वहीं कुछ स्कूलों में हालत इतने खराब हैं कि बरामदे की छत को गिरने से बचाने के लिए लकड़ी की टेक लगानी पड़ रही है।
चमोली जिले के एक स्कूल की तस्वीर दिल दहला देने वाली है। राजकीय प्राथमिक विद्यालय बमोटिया में बच्चों की सुरक्षा का सहारा कोई सीमेंट का मजबूत पिलर नहीं, बल्कि बुरांस की लकड़ी है, जो बरामदे की छत को सहारा दे रही है। इस स्कूल में करीब 50 से 60 बच्चे पढ़ते हैं। हालांकि प्रशासन का कहना है कि जिस हिस्से की छत कमजोर है, वहां कक्षाएं नहीं लगाई जातीं, लेकिन सवाल तो फिर भी खड़ा होता है—अगर खतरा है, तो समाधान कब
यह स्थिति तब है, जब शिक्षा विभाग को प्रदेश के सभी विभागों में सबसे ज्यादा बजट दिया गया है। बावजूद इसके, उत्तराखंड के 11,375 सरकारी स्कूलों में से करीब 2,785 स्कूल भवन जर्जर हालत में हैं।
राजस्थान के झालावाड़ में हाल ही में एक सरकारी स्कूल की छत गिरने से सात मासूम बच्चों की जान चली गई थी और 21 घायल हुए थे। क्या उत्तराखंड किसी ऐसी ही त्रासदी का इंतज़ार कर रहा है?
राज्य की शिक्षा व्यवस्था को स्मार्ट बनाने के साथ-साथ बुनियादी ढांचे पर भी उतनी ही गंभीरता से ध्यान देना जरूरी है। वरना, तकनीक के बीच भी बच्चों की सुरक्षा सवालों के घेरे में रहेगी।