देहरादून: उत्तराखंड की त्रिस्तरीय पंचायतों में अब फिलहाल प्रशासकों की नियुक्ति नहीं होगी, क्योंकि राजभवन ने प्रशासकों की पुनर्नियुक्ति से संबंधित अध्यादेश को मंजूरी देने से इनकार करते हुए वापस लौटा दिया है। इससे राज्य में पंचायत व्यवस्था पर संवैधानिक संकट खड़ा हो गया है।
सूत्रों के अनुसार, पंचायती राज विभाग ने छह महीने का कार्यकाल पूरा कर चुके प्रशासकों की पुनर्नियुक्ति के लिए आनन-फानन में अध्यादेश तैयार किया था। हालांकि, विधायी विभाग पहले ही इस प्रस्ताव को यह कहकर लौटा चुका था कि एक बार वापस आया अध्यादेश उसी रूप में फिर से लाना संवैधानिक नियमों का उल्लंघन माना जाएगा।
फिर भी विभाग ने अध्यादेश राजभवन को भेज दिया, जिसे वहां से तकनीकी कारणों का हवाला देते हुए वापस विधायी विभाग को भेज दिया गया। राज्यपाल के सचिव रविनाथ रामन के अनुसार, विधायी विभाग की आपत्तियों का समाधान किए बिना प्रस्ताव भेजा गया था। कुछ बिंदु स्पष्ट नहीं थे, जिन पर स्पष्टीकरण मांगा गया है।
इस घटनाक्रम के चलते प्रदेश की 7478 ग्राम पंचायतें, 2941 क्षेत्र पंचायतें और 341 जिला पंचायतें अब मुखियाविहीन हो गई हैं। केवल हरिद्वार जिले की 318 ग्राम पंचायतें इस संकट से अछूती हैं, जहां पहले ही चुनाव हो चुके हैं। राज्य में पहली बार पंचायतें बिना निर्वाचित प्रतिनिधियों के चल रही हैं।
गौरतलब है कि उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम 2016 में संशोधन के लिए वर्ष 2021 में एक अध्यादेश लाया गया था। इसे विधानसभा में पारित होना था, लेकिन हरिद्वार में पंचायत चुनाव संपन्न होने के बाद विधेयक को विधानसभा से पारित नहीं कराया गया, जिससे संशोधन अधर में रह गया।