
उत्तराखंड में 38वें राष्ट्रीय खेलों का आयोजन समाप्त हुए एक महीने से अधिक हो चुका है, लेकिन अब भी शासन और विभागों में इससे जुड़े बजट की फाइलें अटकी हुई हैं। आयोजन तो सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया, लेकिन इसमें खर्च हुए करोड़ों रुपये की भरपाई कैसे होगी, इस पर अब तक कोई ठोस समाधान नहीं निकल पाया है।
राष्ट्रीय खेलों के लिए 250 करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया गया था, लेकिन आयोजन में कुल खर्च 450 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। अभी भी करीब 200 करोड़ रुपये की देनदारी बाकी है, जबकि खेल विभाग के पास इतनी बड़ी राशि उपलब्ध नहीं है। अब इस देनदारी के निपटारे के लिए अन्य विभागों के बजट से समायोजन करने की योजना बनाई जा रही है। खेल विभाग के विशेष प्रमुख सचिव अमित सिन्हा ने अन्य विभागों के सचिवों को पत्र लिखकर उनकी बची हुई धनराशि की जानकारी मांगी है, ताकि इस राशि का उपयोग राष्ट्रीय खेलों की देनदारी के भुगतान के लिए किया जा सके।
वित्त विभाग ने अगले वित्तीय वर्ष के लिए 100 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान किया है, लेकिन इससे भी पूरी देनदारी का भुगतान संभव नहीं हो पाएगा। इस स्थिति को देखते हुए अब राष्ट्रीय खेलों के खर्चों का ऑडिट कराने की मांग उठ रही है। सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि आयोजन में किया गया व्यय पारदर्शी हो और किसी भी प्रकार की वित्तीय अनियमितता सामने न आए।
खेल विभाग अब आकस्मिक निधि की मांग कर रहा है ताकि राष्ट्रीय खेलों के आयोजन में लगे विभिन्न एजेंसियों और ठेकेदारों के बकाया भुगतान को जल्द से जल्द पूरा किया जा सके। राष्ट्रीय खेलों के सफल आयोजन ने उत्तराखंड को देशभर में पहचान दिलाई, लेकिन अब इसके वित्तीय प्रबंधन को लेकर चुनौतियां सामने आ रही हैं। सवाल यह उठ रहा है कि इतनी बड़ी राशि की भरपाई कब और कैसे होगी, जिससे खेल विभाग पर कोई अतिरिक्त वित्तीय दबाव न पड़े।