
देहरादून से बड़ी खबर है जहां उत्तराखंड के जांबाज कैप्टन दीपक सिंह को उनके अदम्य साहस के लिए मरणोपरांत शौर्य चक्र से नवाजा गया है। यह सम्मान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उनके माता-पिता को सौंपा। बेटे की वीरता का सम्मान मिलते ही माता-पिता की आंखें भर आईं।
ये वही कैप्टन दीपक सिंह हैं जिन्होंने जम्मू कश्मीर के डोडा जिले के अस्सर इलाके में देश की रक्षा करते हुए अपनी जान गंवाई थी। चौदह अगस्त दो हजार चौबीस की रात को जब सेना को इनपुट मिला कि इलाके में आतंकी छिपे हैं तो दो टीमों का गठन हुआ। इन टीमों की अगुवाई कर रहे थे कैप्टन दीपक। जैसे ही आतंकियों की हलचल दिखी तो उन्होंने तुरंत घेराबंदी शुरू की। पूरी रात आतंकियों से लोहा लिया। अंधेरा और मुश्किल हालात भी उनके हौसले को डिगा नहीं सके।
अगली सुबह सर्च ऑपरेशन शुरू हुआ। इसी दौरान एक घायल आतंकी ने अचानक फायरिंग शुरू कर दी। लेकिन कैप्टन दीपक ने अपने साथी को पीछे किया और खुद मोर्चा संभालते हुए आतंकियों से भिड़ गए। काफी देर तक गोलियां चलती रहीं और इस दौरान वे बुरी तरह घायल हो गए।
उन्हें तुरंत सेना के अस्पताल पहुंचाया गया लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद उनकी जान नहीं बचाई जा सकी। अपनी जान की परवाह किए बिना देश के लिए लड़ते हुए वे वीरगति को प्राप्त हुए।
कैप्टन दीपक सिंह देहरादून के कुआं वाला इलाके के रहने वाले थे। उनके पिता महेश सिंह उत्तराखंड पुलिस से रिटायर हो चुके हैं और माता चंपा सिंह गृहिणी हैं। तीन भाई बहनों में दीपक सबसे छोटे थे। दो बहनें उनसे बड़ी हैं।
जिस दिन वे शहीद हुए उसके कुछ ही दिन बाद रक्षाबंधन था। बहनें राखी बांधने का इंतजार कर रही थीं लेकिन उनका भाई देश के नाम कुर्बान हो गया। उनके पिता ने कहा था कि वे एक आंसू भी नहीं बहाएंगे क्योंकि उन्हें गर्व है कि उनका बेटा देश के लिए जंग लड़ते हुए शहीद हुआ।
कैप्टन दीपक को मिला यह सम्मान पूरे उत्तराखंड के लिए गौरव की बात है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी ने उनकी वीरता को याद करते हुए कहा है कि उत्तराखंड का हर बच्चा देशभक्ति की भावना लेकर बड़ा होता है।
कैप्टन दीपक सिंह की बहादुरी आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरणा देती रहेगी। उनका बलिदान कभी भूला नहीं जाएगा।