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उत्तराखंड सरकार ने एक बार फिर यह साफ कर दिया है कि प्रदेश में अब किसी भी विभाग में संविदा, आउटसोर्स या दैनिक वेतन पर नई भर्ती नहीं की जाएगी। यह फैसला प्रदेश के मुख्य सचिव आनंद वर्धन ने खुद लिया है और उन्होंने इस संबंध में तमाम विभागों को कड़े निर्देश भी जारी किए हैं। आदेश में कहा गया है कि आगे से कोई भी नियुक्ति सिर्फ चयन प्रक्रिया के तहत ही की जाए, चाहे वह पद किसी भी श्रेणी का क्यों न हो।
गौर करने वाली बात यह है कि ऐसा आदेश पहली बार नहीं आया है। राज्य के गठन के बाद साल 2003 में इस तरह की नियुक्तियों पर रोक लगाई गई थी। फिर साल 2018 और उसके बाद 2023 में भी ऐसे ही आदेश जारी किए गए। लेकिन हकीकत यही रही कि हर बार उन आदेशों को ताक पर रखकर विभागों ने अपने-अपने स्तर पर संविदा और आउटसोर्स कर्मचारियों की तैनाती जारी रखी। नतीजा ये हुआ कि आज भी प्रदेश में बड़ी संख्या में ऐसे कर्मचारी कार्यरत हैं जो या तो आउटसोर्स से लाए गए हैं या फिर संविदा और दैनिक वेतन के आधार पर नियुक्त किए गए हैं।
इस बार मुख्य सचिव ने खास तौर पर ये निर्देश दिए हैं कि हर विभाग केवल उन्हीं पदों पर भर्ती करे जो स्वीकृत और नियमित हैं। और इसके लिए सबसे पहले उन रिक्त पदों के लिए अधियाचन भेजा जाए, ताकि चयन आयोग या बोर्ड के ज़रिए प्रक्रिया पूरी हो सके। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि अब बिना चयन प्रक्रिया के किसी भी रूप में नियुक्ति करने की अनुमति नहीं होगी।
लेकिन आदेश के साथ ही एक नया पहलू भी सामने आया है। कर्मचारी राज्य बीमा योजना विभाग की ओर से सरकार को पत्र भेजकर यह आग्रह किया गया है कि जब तक खाली पदों पर नियमित नियुक्ति नहीं होती, तब तक आउटसोर्स एजेंसी के माध्यम से कुछ ज़रूरी पदों पर कर्मचारी तैनात करने की अनुमति दी जाए। यानी आदेश आने के साथ ही अपवाद का रास्ता भी तलाशा जाने लगा है।
इस पूरे घटनाक्रम से एक बात तो साफ है कि सरकार की मंशा इस बार सख्त है, लेकिन क्या इस आदेश का पालन हर विभाग में ईमानदारी से होगा या फिर यह भी पहले की तरह कागज़ों तक सीमित रह जाएगा—इसका जवाब आने वाले समय में ही मिलेगा।