
मां एक ऐसा शब्द है जिसमें पूरी दुनिया समाई होती है। उसकी ममता, उसकी दुआएं और उसकी मूक तपस्या का कर्ज हम कभी नहीं चुका सकते। इसी रिश्ते को सम्मान देने के लिए हर साल मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस दिन की शुरुआत कैसे हुई और क्यों इसे मनाने की परंपरा शुरू हुई।
मदर्स डे की नींव रखी एक महिला ने जो अपनी मां के लिए इतना भावुक थी कि उसने पूरी दुनिया से कह दिया कि मां को सिर्फ दिल में नहीं, एक दिन के रूप में भी याद किया जाना चाहिए। अमेरिका की रहने वाली एना जार्विस नाम की इस महिला ने 1905 में अपनी मां को खो दिया था। मां के निधन के बाद वो टूट गईं लेकिन मां के योगदान को कभी भुला नहीं पाईं। उन्होंने तय किया कि मां की ममता को एक खास दिन के रूप में मनाने की पहल की जानी चाहिए।
एना ने लगातार चिट्ठियां लिखीं, लोगों से मिलती रहीं और अपनी बात रखती रहीं। आखिरकार उनकी ये कोशिश रंग लाई और 1914 में अमेरिका में मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे के रूप में मनाने की आधिकारिक घोषणा कर दी गई। ये दिन धीरे-धीरे पूरी दुनिया में फैल गया और अब हर कोने में लोग अपनी मां को इस दिन याद करते हैं।
भारत में भी मदर्स डे पिछले कुछ दशकों में तेजी से लोकप्रिय हुआ है। यहां भी लोग इस दिन मां के लिए कुछ खास करते हैं। कोई उन्हें तोहफा देता है तो कोई उनके साथ समय बिताता है। हालांकि भारतीय संस्कृति में मां को देवी का दर्जा दिया गया है और यहां हर दिन मां को समर्पित माना जाता है लेकिन आधुनिक जीवनशैली में एक खास दिन का महत्व और भी बढ़ गया है।
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में मां के पास बैठकर दो बातें करने का भी वक्त नहीं मिलता। ऐसे में मदर्स डे एक मौका देता है जब हम रुककर उनकी आंखों में झांकते हैं और बिना कुछ कहे सिर्फ इतना बोलते हैं — मां, तू है तो सब कुछ है।
मदर्स डे सिर्फ एक दिन नहीं बल्कि उस ममता का उत्सव है जो बिना शर्त, बिना उम्मीद के हमें मिलती है। एक दिन नहीं बल्कि हर पल हमें अपनी मां को धन्यवाद कहना चाहिए। लेकिन अगर वक्त नहीं मिलता तो कम से कम एक दिन तो जरूर उनके नाम होना ही चाहिए। यही है मदर्स डे की असली पहचान।